भारत की सैन्य परंपराओं में 2025 का यह वर्ष एक मील का पत्थर बन गया है। नेशनल डिफेंस अकादमी (NDA) से महिलाओं का पहला बैच सफलतापूर्वक पास आउट हुआ — यह घटना सिर्फ एक समारोह नहीं, बल्कि भारतीय समाज, सैन्य नीति और लैंगिक समानता की दिशा में उठाया गया एक क्रांतिकारी कदम है। यह दृश्य, जहाँ कंधों पर सितारे और आँखों में गर्व लिए भारत की बेटियाँ परेड ग्राउंड में मार्च कर रही थीं, आने वाले समय के लिए प्रेरणा और संभावना का प्रतीक है। यह केवल एक संस्थान में महिलाओं की मौजूदगी भर नहीं है, बल्कि भारतीय सैन्य सेवा में लैंगिक समावेशन के एक लंबे संघर्ष का परिणाम है। आइए समझते हैं कि यह यात्रा कहाँ से शुरू हुई, NDA में महिलाओं की भागीदारी क्यों ऐतिहासिक रही, और अब जब यह द्वार खुल चुका है, तो भविष्य में क्या परिवर्तन अपेक्षित हैं।
1.भारतीय सैन्य सेवा में महिलाओं की भागीदारी: एक ऐतिहासिक यात्रा....
प्रारंभिक चरण: सीमित अवसरों की शुरुआत:-
वर्ष 1954 से लेकर 2021 तक – NDA में केवल पुरुष कैडेट्स को प्रशिक्षण देने की अनुमति थी। महिलाओं के लिए सेना में अधिकारी बनने का रास्ता SSC (Short Service Commission) या OTS (Officers Training School) जैसे कोर्सों के माध्यम से था, NDA उनके लिए बंद था।
भारतीय सेना में महिलाओं के प्रवेश की विस्तृत टाइमलाइन..
1888 - अंग्रेजों द्वारा मिलिट्री नर्सिंग सर्विसेज में पहली बार भारतीय महिलाओं को स्थान दिया गया। 1950 भारतीय गणराज्य की स्थापना के बाद इसे Military Nursing Service (MNS) के रूप में भारतीय सेना की एक स्थायी और नियमित सेवा के तौर पर मान्यता दी गई। यह भारतीय सेना चिकित्सा कोर (AMC) के अधीन एक विशिष्ट सेवा है।
1958 - भारतीय मेडिकल कोर में महिलाओं को डॉक्टर के रूप में कमीशन अधिकारी बनाए जाने की शुरुआत।
1992 - भारतीय सेना द्वारा स्पेशल एंट्री स्कीम की शुरुआत की गई जहां पर महिलाओं को नॉन कंबटेंट शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी की शुरुआत की गई।
2008 - में, एयरफोर्स ने पहली बार महिला पायलटों को ट्रांसपोर्ट और हेलीकॉप्टर स्क्वॉड्रन में शामिल किया। 2015 में, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की दिशा में अहम फैसला आया, जिससे उन्हें दीर्घकालिक सैन्य करियर का अवसर मिला। जज एडवोकेट जनरल एवं आर्मी एजुकेशन कौर की महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों को परमानेंट कमिशन दिए जाने की शुरुआत की गई।
विस्तार और बदलते भारत में महिलाओं को बराबरी के हक दिए जाने की आवाज :-
2019 - भारत सरकार ने नॉन कंबटेंट कैटेगरी में महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन दिए जाने की बात स्वीकार की लेकिन कमांड की जिम्मेवारी से दूर रखा।
2020 - महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन एवं कमांड करने की इजाजत ।
2021 , 13 अगस्त- भारत सरकार का लैंगिक समानता पर प्रतिक्रिया : भूतपूर्व सैनिक विकास समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्नल देव आनंद द्वारा भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह के साथ"राष्ट्रव्यापी वीडियो कांफ्रेंस" के दौरान सेना में महिलाओं को बराबरी के अधिकार दिए जाने के आग्रह पर भारत सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया।
2021, 18 अगस्त – सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक अंतरिम आदेश : सुप्रीम कोर्ट ने NDA में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को असंवैधानिक माना। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की पीठ ने UPSC को निर्देश दिया कि महिलाओं को NDA परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए।
2021, 8 सितंबर – केंद्र सरकार की पहली प्रतिक्रिया : केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि वह "सिद्धांत रूप में" महिलाओं को NDA में प्रवेश देने को तैयार है, लेकिन आवश्यक ढांचागत तैयारी के लिए और समय चाहिए।
2021, 22 सितंबर – कोर्ट ने समय मांग को खारिज किया : सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की समय मांग को अस्वीकार करते हुए कहा कि महिलाओं को 2021 की NDA परीक्षा में ही शामिल किया जाए। अदालत ने कहा, “यह बदलाव समय की मांग है, अब और इंतजार नहीं किया जा सकता।”
2021 नवंबर – महिलाओं की पहली NDA परीक्षा: UPSC ने महिलाओं के लिए भी आवेदन आमंत्रित किए। पहली बार, NDA की परीक्षा में महिला अभ्यर्थी शामिल हुईं।
2022, जुलाई – NDA में महिलाओं की पहली बैच शामिल: NDA में महिलाओं की पहली बैच जुलाई में दाखिल हुई। लगभग 19 महिला कैडेट्स को भर्ती किया गया।
2023, मार्च - महिला 272 अग्निवीरों की पहली बैच भारतीय नौसेना के INS Chilka प्रशिक्षण केंद्र में शामिल हुई। भारतीय वायुसेना और थल सेना ने भी महिला अग्निवीरों के लिए अवसर प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की।
2025, 30 मई – पहली महिला बैच का NDA से स्नातक 17 महिला कैडेट्स NDA से सफलतापूर्वक स्नातक हुईं। ये महिलाएं अब सेना की तीनों शाखाओं – थल, वायु और नौसेना में स्थायी कमीशन पाने की पात्र होंगी।
2. NDA में महिलाओं की भर्ती: क्रांति की शुरुआत
NDA क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?
नेशनल डिफेंस अकादमी, खड़कवासला (पुणे) स्थित, भारतीय थल सेना, नौसेना और वायुसेना के कैडेट्स को संयुक्त प्रशिक्षण देने वाला प्रमुख संस्थान है। यहाँ से पास आउट होने वाले अधिकारी देश की तीनों सेनाओं की रीढ़ माने जाते हैं। अब तक NDA में केवल पुरुष कैडेट्स को ही प्रवेश की अनुमति थी। लेकिन 2021 से महिलाओं को NDA प्रवेश परीक्षा में बैठने की अनुमति दी, जिसके बाद 2022 में पहला बैच प्रवेशित हुआ और मई 2025 में पास आउट होकर इतिहास रच गया।
प्रशिक्षण की कठिन राह और विजय की कहानी
NDA की 3 साल की कठोर ट्रेनिंग — जिसमें शारीरिक, मानसिक, सैन्य और शैक्षणिक प्रशिक्षण शामिल है — को महिला कैडेट्स ने न केवल पार किया, बल्कि कई क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन भी किया। यह इस बात का प्रमाण है कि योग्यता और परिश्रम लिंग पर आधारित नहीं होते।
3. यह परिवर्तन क्यों ऐतिहासिक और क्रांतिकारी है?
लैंगिक समानता की दिशा में बड़ा कदम
NDA में महिलाओं का प्रवेश भारतीय सैन्य संस्थानों में एक नई विचारधारा की नींव रखता है — जो लिंग के आधार पर नहीं, बल्कि क्षमता के आधार पर निर्णय लेती है। यह कदम भारत की बेटियों के लिए न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि देश की सुरक्षा नीति में भी समावेशिता का संकेत है।
मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिवर्तन
इस बदलाव से सामाजिक मानसिकता पर भी असर पड़ा है। जहाँ एक समय महिलाओं को केवल "किरणों" या "नर्सिंग ऑफिसरों" के रूप में देखा जाता था, अब वे देश की सीमाओं की रक्षा में नेतृत्व करने को तैयार हैं।
विश्व की तुलना में भारत की प्रगति
अमेरिका, इजराइल, ब्रिटेन जैसी सेनाओं में महिलाएं लंबे समय से लड़ाकू भूमिकाओं में हैं। भारत अब इस वैश्विक समानता की ओर ठोस कदम बढ़ा चुका है। NDA में महिलाओं की भर्ती इसी क्रम का हिस्सा है।
4. आने वाले समय में क्या-क्या बदलाव अपेक्षित हैं?
(क) लड़ाकू भूमिकाओं में पूर्ण समावेशन:-
अब जब महिलाएं NDA जैसी संस्थानों से पास आउट होकर कमीशंड ऑफिसर बन रही हैं, तो उन्हें Infantry, Armored Corps, Mechanized Infantry जैसी कठिन शाखाओं में भी शामिल किया जाना चाहिए। यह निर्णय समावेशी सुरक्षा रणनीति का हिस्सा बनना चाहिए।
(ख) बुनियादी ढांचे में सुधार
अभी भी कई सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों और यूनिट्स में महिलाओं के लिए उपयुक्त रहने, प्रशिक्षण और सुविधाओं का अभाव है। NDA में भी प्रारंभिक वर्षों में महिला बैरक, स्वच्छता व्यवस्था और यौन उत्पीड़न के निवारण की उच्च स्तरीय व्यवस्था की गई। भविष्य में यह सुविधाएँ सभी स्तरों पर अनिवार्य होनी चाहिए।
(ग) मानसिकता परिवर्तन प्रशिक्षण
महिलाओं को केवल 'प्रतीक' न मानकर, 'नेता' मानने की आवश्यकता है। इसके लिए पुरुष सैनिकों और अधिकारियों में भी लैंगिक संवेदनशीलता पर आधारित प्रशिक्षण आवश्यक है ताकि कार्यक्षेत्र में समानता और सम्मान सुनिश्चित हो सके।
(घ) पदोन्नति और नेतृत्व में समान अवसर:-
अतीत में यह देखा गया कि महिलाओं को उच्च पदों तक पहुँचने में बाधाएँ आती हैं — चाहे वह समयावधि हो, कमांड अनुभव या प्रशासनिक बाधाएँ। अब जबकि NDA ट्रेंड महिलाएं मैदान में होंगी, उन्हें नेतृत्व में भी समान अवसर देना चाहिए।
5. सेना के लिए यह क्या मायने रखता है?
सामरिक लाभ:-
किसी भी सेना की शक्ति केवल उसकी तकनीक या हथियारों में नहीं होती, बल्कि उसके मानव संसाधनों में होती है। जब एक पूरी आबादी (महिला जनसंख्या) को सैन्य योगदान से बाहर रखा जाता है, तो यह देश की क्षमताओं का अपव्यय होता है। महिलाओं की भागीदारी से सेना को नई दृष्टि, संवेदनशीलता और विविध दृष्टिकोण मिलते हैं।
सामाजिक एकता का प्रतीक:-
सेना समाज का प्रतिनिधित्व करती है। जब महिलाएं सेना में हैं, तो यह सामाजिक समानता और न्याय का उदाहरण बनता है। इससे देश में "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की भावना को भी बल मिलता है।
एनडीए में चयन प्रक्रिया :-
एनडीए की फाइनल मेरिट यूपीएससी लिखित परीक्षा और SSB के आधार पर बनती है।
लिखित यूपीएससी परीक्षा - एनडीए में चयन के लिए पहला चरण लिखित परीक्षा है, जिसका आयोजन यूपीएससी करता है. इसमें दो पेपर होते हैं – गणित (300 अंक) और सामान्य योग्यता परीक्षा (GAT, 600 अंक). इसमें सभी प्रश्न MCQ यानी बहुविकल्पीय होते हैं. इसमें प्रत्येक पेपर के लिए 2.5 घंटे मिलते हैं. एनडीए लिखित परीक्षा में गलत उत्तर के लिए 0.83 (गणित) और 1.33 (GAT) अंक कटते हैं. इसमें सफल होने के लिए हर विषय में कम से कम 25% अंक हासिल करना जरूरी है.
SSB इंटरव्यू : यह एनडीए में चयन के लिए दूसरा चरण है। लिखित परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों को 5 दिन की SSB साक्षात्कार प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसमें साइकोलॉजिकल टेस्टिंग, ग्रुप एक्टिविटी, पर्सनल इंटरव्यू और फिजिकल टेस्ट जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसके लिए कुल 900 अंक निर्धारित किए गए हैं। SSB पास करने के बाद उम्मीदवारों की शारीरिक और मानसिक फिटनेस की जांच होती है। ऊंचाई, वजन, दृष्टि और अन्य चिकित्सा मानकों को पूरा करना जरूरी है।
भागीदारी सुनिश्चित करने वाले प्रमुख तत्व और व्यक्ति
1. नीतिगत वकालत और जन संवाद :-
भूतपूर्व सैनिक विकास समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं साथियो ने 2017 से ही सार्वजनिक मंचों, संगोष्ठियों, अखबारों में एडिटोरियल और मीडिया संवादों के माध्यम से यह मांग दोहराई कि महिलाओं को न केवल प्रशासनिक शाखाओं में, बल्कि कॉम्बैट एवं रणनीतिक भूमिकाओं में भी स्थान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कई बार ज्ञापन सौंपे जिनमें महिलाओं के लिए नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) और सैनिक स्कूल में प्रवेश, सेना मै स्थायी कमीशन और समान प्रशिक्षण व अवसर की मांग प्रमुख रही। सैनिक विकास समिति की राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष कैप्टन अमृत कौर तथा सेवानिवृत्ति महिला अधिकारियों व अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सेना में लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध आवाज़ उठाई। महिला अभ्यर्थियों ने भी स्वयं NDA में प्रवेश न मिलने पर सार्वजनिक रूप से अपना पक्ष रखा, जिससे सामाजिक दबाव बना। 13 अगस्त 2021 को भारत सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रव्यापी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान भूतपूर्व सैनिक विकास समिति द्वारा भारतीय सेना में लैंगिक समानता स्थापित करने के आग्रह पर सकारात्मक टिप्पणी ,टीवी चैनलों और अखबारों पर उनके साक्षात्कारों के उपरांत बदलाव तेज गति से होने लगे कि सेना में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ अधिकार नहीं, बल्कि आवश्यकता भी है।
2. न्यायपालिका (Judiciary):
जहां एक तरफ अभ्यर्थियों के वकीलों द्वारा न्यायालय में याचिका के माध्यम से इस विषय पर पैरवी की वहीं पर
सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर अनेक ऐतिहासिक निर्णय दिए, जिनमें महिलाओं को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) देने और NDA में प्रवेश की अनुमति शामिल है। 2020 के फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि “स्त्री और पुरुष में कोई भी कार्यक्षमता आधारित भेदभाव नहीं किया जा सकता।”
3. जनजागरूकता और मीडिया लेखन :
अनेक पत्रकारों, संपादकों और सामाजिक विज्ञान विभागों ने इस मुद्दे को मुख्यधारा में लाकर जनचेतना जागृत की।
विश्वविद्यालयों और थिंक टैंकों द्वारा आयोजित सेमिनारों और शोधों ने यह स्पष्ट किया कि महिलाओं को सेना में शामिल करने से उसकी संचालन क्षमता और समावेशिता बढ़ती है।
निष्कर्ष: एक नई सुबह का वादा
NDA से महिला कैडेट्स का पास आउट होना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक और वैचारिक स्तर पर भी परिवर्तन का संकेत है। यह भारत की उस आकांक्षा को दर्शाता है, जिसमें सुरक्षा, समानता और समावेशन को साथ लेकर चलना है। अब समय है कि इस ऐतिहासिक शुरुआत को स्थायित्व और व्यापकता दी जाए। नीति-निर्माताओं, सैन्य नेतृत्व और समाज — सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि यह परिवर्तन सतही नहीं, बल्कि गहराई में जाकर भारतीय सेना की आत्मा का हिस्सा बने।
"जब देश की बेटियाँ बंदूक नहीं, बैरक नहीं — नेतृत्व करने निकल पड़ें, तो समझिए कि बदलाव की बयार आ चुकी है। NDA का यह बैच सिर्फ एक कदम नहीं, एक युग परिवर्तन की शुरुआत है।