26/11 मुंबई आतंकवादी हमला और उसके पीछे के छुपे षड्यंत्र जिसके अंतर्गत "कराची प्रोजेक्ट" एव "हिंदू आतंकवाद" की झूठी पटकथा - भारत की आंतरिक सुरक्षा के खिलाफ पाकिस्तान की ‘प्रॉक्सी वॉर’ की एक बड़ी मिसाल है। इस हमले के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और अमेरिका में बैठे सहयोगियों की भूमिका अब किसी रहस्य की बात नहीं रही। इन सहयोगियों में सबसे अहम नाम है — तहव्वुर हुसैन राणा, एक पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी नागरिक, जिसकी भारत को प्रत्यर्पण हो चुका है । यह प्रत्यर्पण न केवल 26/11 की जांच को निर्णायक मोड़ तक ले जाएगा, बल्कि प्रोजेक्ट कराची एवं उन राजनीतिक रूप से प्रेरित नैरेटिव्स, विशेषकर "हिंदू आतंकवाद" की थ्योरी, का भी भंडाफोड़ करेगा जो इन वर्षों में फैलाए गए।
मुंबई हमला (26/11):- भारत की आत्मा पर हमला..
26 नवंबर 2008, वो दिन था जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हमला किया था । 10 पाकिस्तानी आतंकवादि जो कराची से समुद्री रास्ते आए थे। लश्कर-ए-तैयबा के निर्देश पर शहर के प्रमुख ठिकानों को निशाना बनाते हुये ताज होटल, ओबेरॉय होटल, नरीमन हाउस, CST स्टेशन और लियोपोल्ड कैफे पर हमला किया। अजमल कसाब, एकमात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकवादी था जिसने माथे पर तिलक एवं हाथ में कलावा तथा भारतीय नागरिक पहचान पत्र था। इस हमले में 166 निर्दोष लोगों की मौत एवं 300+ घायल हुए थे।
क्या था कराची प्रोजेक्ट ?.....
अमेरिका में हुए 9/11 हमले के उपरांत पाकिस्तान को पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी संगठनों को बंद करने का दबाव दिया गया। पाकिस्तान ने उन आतंकवादी संगठनों को बंद करने की बजाय पाकिस्तान के दूसरे शहरों एवं लाश कर तैयबा को कराची में स्थानांतरण कर दिया । "कराची प्रोजेक्ट" एक गुप्त साजिश थी, जिसे पाकिस्तान की ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) और आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने मिलकर तैयार किया था। 2003 -04 के आसपास ISI ने यह महसूस किया कि यदि भारत में रहने वाले मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाकर आतंक के रास्ते पर लाया जाए तो भारत को ज्यादा गहरी चोट दी जा सकती है। इसके लिए ISI ने एक गुप्त प्रोजेक्ट बनाया, जिसका संचालन कराची शहर से होता था – इसीलिए इसे कराची प्रोजेक्ट कहा गया। यह प्रोजेक्ट इंडियन मुजाहिदीन (IM), लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और बाद में हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों के गठबंधन पर आधारित था। इसका मकसद भारत में स्थानीय युवाओं को आतंकवादी प्रशिक्षण देकर भारत में ही आतंकी हमलों के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल तथा आतंकवाद का घरेलू आतंकवाद का रूप देना , जिससे पाकिस्तान का सीधा लिंक छुपाया जा सके।
प्रमुख किरदार:
@ रीयाज और इकबाल भटकल: इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक, कराची में ISI की सुरक्षा में रह रहा था।
@ अमीर रज़ा: LeT और IM के बीच समन्वय बनाने वाला आतंकी।
@ डेविड हेडली (Daood Gilani): अमेरिकी नागरिक जिसने 26/11 हमलों से पहले रेकी की और कराची प्रोजेक्ट की जानकारी अमेरिकी एजेंसियों को दी।
कराची प्रोजेक्ट का मुंबई हमले से संबंध :-
हालांकि मुंबई हमला लश्कर-ए-तैयबा द्वारा अंजाम दिया गया था, लेकिन इसकी जड़ें "कराची प्रोजेक्ट" में थीं। जांच एजेंसियों के अनुसार, कराची प्रोजेक्ट के तहत भारत के भीतर मौजूद इंडियन मुजाहिदीन के नेटवर्क को सक्रिय किया गया। ISI ने रणनीतिक रूप से भारतीय मुस्लिम युवाओं को बरगलाकर उन्हें कराची या पाक अधिकृत कश्मीर भेजा, जहां उन्हें प्रशिक्षण दिया गया। रियाज भटकल, अमीन भटकल, फहीम अंसारी जैसे नाम सामने आए जो मुंबई हमले के नक्शे और योजनाओं में शामिल थे। प्रमुख हमले जो कराची प्रोजेक्ट से जुड़े माने जाते हैं:
2006 मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट, 2008 दिल्ली ब्लास्ट, 2010 पुणे जर्मन बेकरी ब्लास्ट, 2010 वाराणसी गंगा घाट विस्फोट एवम 2008 अहमदाबाद ब्लास्ट। इनमें से कई मामलों में जांच एजेंसियों ने पाया कि आतंकी हमलावरों को निर्देश पाकिस्तान के कराची शहर से मिल रहे थे।
ISI, लश्कर-ए-तैयबा और दाऊद का त्रिकोण:-
कराची प्रोजेक्ट में पाकिस्तान की तीन प्रमुख ताकतें एक साथ काम कर रही थीं जिसके अंतर्गत ISI (मास्टरमाइंड और रणनीतिक योजना), लश्कर-ए-तैयबा (आतंकी मॉड्यूल का संचालन) एवं दाऊद इब्राहिम गैंग (लॉजिस्टिक सपोर्ट, हथियार, हवाला नेटवर्क) अपना अपना कार्य कर रहे थे । इनका लक्ष्य था भारत में "1000 cuts policy" के तहत लगातार छोटे-बड़े आतंकी हमले कर भारत की आंतरिक सुरक्षा को कमजोर करना तथा पाकिस्तान की संलिप्तता छिपाना।
हिंदू आतंकवाद: एक झूठी पटकथा कैसे गढ़ी गई?
समय और संदर्भ -: भारत में दशकों से आतंकवाद का सबसे अधिक शिकार हिंदू समाज रहा है—चाहे वह कश्मीर हो, पंजाब, असम, या फिर माओवादी हिंसा। लेकिन 2007 के बाद अचानक "हिंदू आतंकवाद" या "भगवा आतंकवाद" जैसे शब्द मीडिया और राजनीति में उभरने लगे। मुंबई हमले के ठीक बाद, जबकि भारत का ध्यान ISI और लश्कर की भूमिका पर केंद्रित था, उसी समय मालेगांव (2008), समझौता एक्सप्रेस (2007) और अजमेर शरीफ (2007) के पुराने मामलों को उछाला गया।
1. समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट (2007) & मालेगांव ब्लास्ट (2006 व 2008): पहले इन धमाकों के लिए सिमी , इंडियन मुजाहिदीन जैसे कट्टर इस्लामिक संगठन तथा पाकिस्तानी आतंकी संगठनों पर शक गया लेकिन एक हिंदू विरोधी मानसिकता के अंतर्गत हिंदू सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित, एक साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और एक हिंदू संत स्वामी असीमानंद जैसे हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों को आरोपी बनाया गया जो अंततः झूठा साबित हुआ।
2. भारत विरोधी ताकतों की भूमिका : 2008 में तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने पहली बार "हिंदू आतंकवाद" शब्द का उपयोग किया। यह बयान ऐसे समय आया जब: मुंबई आतंकी हमले (26/11) के बाद कांग्रेस सरकार पर राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भारी दबाव था, इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई न कर पाने पर सरकार की आलोचना हो रही थी एवं 2009 के आम चुनाव से पहले मुस्लिम वोट बैंक को सुरक्षित रखने के लिए एक 'counter-narrative' तैयार करते हुए यह दिखाना की आतंकवाद केवल मुस्लिम समुदाय से नहीं जुड़ा है , भाजपा और आरएसएस जैसे हिंदू संगठनों को 'असहिष्णु' और 'कट्टरपंथी' के रूप में पेश करना तथा ‘सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता’ की बहस को फिर से जिंदा करना।
3. मीडिया और वामपंथी ताकतों की भूमिका
‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द को मीडिया के एक खास वर्ग ने बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया: एनडीटीवी, द वायर, द प्रिंट, आदि जैसे प्लेटफॉर्म्स ने बिना कोर्ट के अंतिम निर्णय के इन आरोपियों को 'आतंकवादी' के रूप में प्रस्तुत किया।
वामपंथी लेखक और एक्टिविस्ट्स ने इसे भारत में 'ब्राह्मणवादी फासीवाद' और 'हिंदू कट्टरता' के प्रमाण के रूप में प्रचारित किया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इसे भारत के 'हिंदू राष्ट्रवाद' के खिलाफ सबूत के तौर पर पेश किया गया।
न्यायिक निर्णय और साजिश का भंडाफोड़-:
2019 में स्वामी असीमानंद, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित कई आरोपियों को अदालतों ने या तो दोषमुक्त कर दिया या जमानत पर रिहा किया। एक प्रश्न जरूर उठना है कि यदि वे दोषी नहीं थे, तो वर्षों तक इन्हें जेल में क्यों रखा गया? क्या जांच एजेंसियों पर राजनीतिक दबाव था? क्या यह एक सुनियोजित साजिश थी हिंदू संगठनों को बदनाम करने की?
हेडली-राणा- ISI नेटवर्क और मुंबई हमला:-
तहव्वुर राणा डेविड हेडली का बचपन का मित्र व सह-साजिशकर्ता ने हेडली को भारत जाने और रेकी करने के लिए अपने व्यवसाय "इमीग्रेशन लॉ सेंटर" की आड़ में फर्जी पहचान दिलाई। उसने पाकिस्तान के ISI और लश्कर-ए-तैयबा के साथ संवेदनशील सूचनाओं का आदान-प्रदान किया। डेविड हेडली के बयान के आधार पर राणा के माध्यम से वह 11 बार भारत आया और ताज होटल, नरीमन हाउस, गेटवे ऑफ इंडिया, यहूदी स्थलों की रेकी की। राणा ने उसे व्यापारिक प्रतिनिधि बताकर भारत भेजा और मिशन को “बिज़नेस ट्रिप” का रूप दिया। राणा की मिलीभगत से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने मुंबई हमले के लिए ठोस खाका तैयार किया। अमेरिकी जांच एजेंसियों ने यह भी स्वीकार किया कि राणा को ISI से नियमित संपर्क में रहने के लिए निर्देश मिला था।
राणा का प्रत्यर्पण: भारत के लिए क्यों निर्णायक?
कूटनीतिक जीत - अमेरिका की अदालत ने कहा कि राणा पर भारत में मुकदमा चलाया जाना वैध है, क्योंकि अपराध भारत की ज़मीन पर हुआ। इससे भारत को नए प्रमाण, अंतरराष्ट्रीय सहमति और पाकिस्तानी लिंक को कानूनी रूप से उजागर करने का अवसर मिलेगा। UN ने हाफिज सईद, जकीउर रहमान लखवी जैसे आतंकियों को प्रतिबंधित किया, पर वे आज भी पाकिस्तान में खुलेआम घूमते हैं।
जांच एजेंसियों की पुनर्स्थापना - यह प्रत्यर्पण 2008 के बाद से हुई जांचों की विश्वसनीयता को और मजबूत करता है, खासकर जब कुछ भारतीय राजनीतिक दलों ने इस हमले को “RSS की साजिश” कहने की कोशिश की थी।
निष्कर्ष
तहव्वुर राणा की भारत वापसी सिर्फ एक व्यक्ति का प्रत्यर्पण नहीं, बल्कि भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में न्याय की वापसी है। यह वह मौका है जब भारत दुनिया को दिखा सकता है कि: 26/11 हमला पूरी तरह से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित युद्ध था, भारत में “हिंदू आतंकवाद” का नैरेटिव एक राजनीतिक हथियार था और इस साजिश ने केवल आतंकवाद नहीं फैलाया, बल्कि भारत की आंतरिक एकता को भी चोट पहुंचाई। आज आवश्यकता है कि हम तहव्वुर राणा जैसे किरदारों से न केवल सच्चाई निकलवाएं, बल्कि उन्हें न्याय के कटघरे में लाकर इतिहास का पुनर्लेखन करें — तथ्यों के साथ, निष्पक्षता के साथ।